उदास कर देती है, हर रोज ये शाम मुझे ..!! यूँ लगता है, जैसे कोई भूल रहा हो, मुझे आहिस्ता आहिस्ता..!!
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शायराना सी हैं जिंदगी की फ़िज़ा
उदास कर देती है, हर रोज ये शाम मुझे ..!! यूँ लगता है, जैसे कोई भूल रहा हो, मुझे आहिस्ता आहिस्ता..!!
फिर पलट रही है सर्दियो की सुहानी शामें,
फिर उसकी याद में जलने का ज़माना आ गया
कट गई झगड़े में सारी रात वस्ल-ए-यार की
शाम को बोसा लिया था, सुबह तक तक़रार की
शाम तक सुबह की नज़रों से उतर जाते हैं,
इतने समझौतों पे जीते हैं कि मर जाते हैं…
ये उदास शाम और तेरी ज़ालिम याद….!
खुदा खैर करे अभी तो रात बाकि है….