दर्द के इश्क़ है उसका कोई अंजाम नही होता।
शहर में चर्चे बहुत मेरे में गुमनाम नही होता।
पढ़ता रहा में क़लाम के मोहबब्त दिल से मगर
शोहरा ए मोहबब्त में भी मेरा नाम नही होता।
की उसने इल्ज़ाम तराशी मुझे बहुत लोगो से।
अख़लाक़ मेरे सही थे इसलिए बदनाम नही होता।
खड़ा किया बाज़ार में बेचने को चौराहे शहर के।
क़ीमती सामान का कभी कोई दाम नही होता।
जल गई बस्तियां उजड़ गये आशियाने गरीबो के।
मगर शहर किसी अख़बार में उनका नाम नही होता।
अमीर ए शहर की शौहरत सभी की ज़ुबाँ पर लेकिन
मेरे मुफ़लिसी का तज़करा किसी क़लाम नही होता।
फुर्सत नही लम्हो किसी को शहर में इंसान अभी।
फसाद हो रहे बहुत इंसानियत कोई काम नही होता।
उड़ते रही ख़ाक जलते रहे झोपड़े मेरे ही गाँव के।
बोलती रही ज़ुबाँ मगर किस्सा कभी तमाम नही होता
पड़ते रहे निशान मेरे कदमो मन्ज़िल की राह में।
सिलसिले चलते रहे मुलाकात के वक़्त नही होता।
दर्द बहुत दिया मेरे अपनो ने इंसानियत में मगर।
अब मुझसे दर्द ए अहसास भी ज़ब्त नही होता।
मुल्क में बाँटते रहे रिसाले अमन के लोगो के दरमियाँ।
उन रिसालों में आरिफ़ कही कोई पैग़ाम nhi hota
#Azhan
दर्द के इश्क़ है उसका कोई अंजाम नही होता।
शहर में चर्चे बहुत मेरे में गुमनाम नही होता।
पढ़ता रहा में क़लाम के मोहबब्त दिल से मगर
शोहरा ए मोहबब्त में भी मेरा नाम नही होता।
की उसने इल्ज़ाम तराशी मुझे बहुत लोगो से।
अख़लाक़ मेरे सही थे इसलिए बदनाम नही होता।
खड़ा किया बाज़ार में बेचने को चौराहे शहर के।
क़ीमती सामान का कभी कोई दाम नही होता।
जल गई बस्तियां उजड़ गये आशियाने गरीबो के।
मगर शहर किसी अख़बार में उनका नाम नही होता।
अमीर ए शहर की शौहरत सभी की ज़ुबाँ पर लेकिन
मेरे मुफ़लिसी का तज़करा किसी क़लाम नही होता।
फुर्सत नही लम्हो किसी को शहर में इंसान अभी।
फसाद हो रहे बहुत इंसानियत कोई काम नही होता।
उड़ते रही ख़ाक जलते रहे झोपड़े मेरे ही गाँव के।
बोलती रही ज़ुबाँ मगर किस्सा कभी तमाम नही होता
पड़ते रहे निशान मेरे कदमो मन्ज़िल की राह में।
सिलसिले चलते रहे मुलाकात के वक़्त नही होता।
दर्द बहुत दिया मेरे अपनो ने इंसानियत में मगर।
अब मुझसे दर्द ए अहसास भी ज़ब्त नही होता।
मुल्क में बाँटते रहे रिसाले अमन के लोगो के दरमियाँ।
उन रिसालों में आरिफ़ कही कोई पैग़ाम nhi hota
#Azhan
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