आज सोचा तो आँसू भर आए
मुद्दतें हो गईं मुस्कुराए
हर कदम पर उधर मुड़ के देखा
उनकी महफ़िल से हम उठ तो आए
दिल की नाज़ुक रगें टूटती हैं
याद इतना भी कोई न आए
रह गई ज़िंदगी दर्द बनके
दर्द दिल में छुपाए छुपाए
Kaifi azmi
शायराना सी हैं जिंदगी की फ़िज़ा
आज सोचा तो आँसू भर आए
मुद्दतें हो गईं मुस्कुराए
हर कदम पर उधर मुड़ के देखा
उनकी महफ़िल से हम उठ तो आए
दिल की नाज़ुक रगें टूटती हैं
याद इतना भी कोई न आए
रह गई ज़िंदगी दर्द बनके
दर्द दिल में छुपाए छुपाए
Kaifi azmi
आज की रात बहुत गर्म हवा चलती है,
आज की रात न फ़ुटपाथ पे नींद आएगी,
सब उठो, मैं भी उठूँ, तुम भी उठो, तुम भी उठो,
कोई खिड़की इसी दीवार में खुल जाएगी ।
ये जमीं तब भी निगल लेने को आमादा थी,
पाँव जब टूटती शाखों से उतारे हमने,
इन मकानों को ख़बर है न, मकीनों को ख़बर
उन दिनों की जो गुफ़ाओं में गुज़ारे हमने ।
हाथ ढलते गए साँचों में तो थकते कैसे,
नक़्श के बाद नए नक़्श निखारे हमने,
की ये दीवार बुलन्द, और बुलन्द, और बुलन्द,
बाम-ओ-दर और ज़रा और निखारे हमने ।
आँधियाँ तोड़ लिया करतीं थीं शामों की लौएँ,
जड़ दिए इस लिए बिजली के सितारे हमने,
बन गया कस्र तो पहरे पे कोई बैठ गया,
सो रहे ख़ाक पे हम शोरिश -ए-तामीर लिए ।
अपनी नस-नस में लिए मेहनत-ए-पैहम की थकन,
बन्द आँखों में इसी कस्र की तस्वीर लिए,
दिन पिघलता है इसी तरह सरों पर अब तक,
रात आँखों में खटकती है सियाह तीर लिए ।
आज की रात बहुत गर्म हवा चलती है,
आज की रात न फुटपाथ पे नींद आएगी,
सब उठो, मैं भी उठूँ, तुम भी उठो, तुम भी उठो,
कोई खिड़की इसी दीवार में खुल जाएगी ।
Kaifi azmi
अज़ा में बहते थे आँसू यहाँ, लहू तो नहीं
ये कोई और जगह है ये लखनऊ तो नहीं
यहाँ तो चलती हैं छुरिया ज़ुबाँ से पहले
ये मीर अनीस की, आतिश की गुफ़्तगू तो नहीं
चमक रहा है जो दामन पे दोनों फ़िरक़ों के
बग़ौर देखो ये इस्लाम का लहू तो नहीं
Kaifi azmi
अब तुम आग़ोश-ए-तसव्वुर में भी आया न करो
मुझ से बिखरे हुये गेसू नहीं देखे जाते
सुर्ख़ आँखों की क़सम काँपती पलकों की क़सम
थर-थराते हुये आँसू नहीं देखे जाते
अब तुम आग़ोश-ए-तसव्वुर में भी आया न करो
छूट जाने दो जो दामन-ए-वफ़ा छूट गया
क्यूँ ये लग़ज़ीदा ख़रामी ये पशेमाँ नज़री
तुम ने तोड़ा नहीं रिश्ता-ए-दिल टूट गया
अब तुम आग़ोश-ए-तसव्वुर में भी आया न करो
मेरी आहों से ये रुख़सार न कुम्हला जायें
ढूँढती होगी तुम्हें रस में नहाई हुई रात
जाओ कलियाँ न कहीं सेज की मुरझा जायें
अब तुम आग़ोश-ए-तसव्वुर में भी आया न करो
मैं इस उजड़े हुये पहलू में बिठा लूँ न कहीं
लब-ए-शीरीं का नमक आरिज़-ए-नमकीं की मिठास
अपने तरसे हुये होंठों में चुरा लूँ न कहीं
Kaifi azmi
जिस तरह हँस रहा हूँ मैं पी-पी के अश्क-ए-ग़म
यूँ दूसरा हँसे तो कलेजा निकल पड़े
आज की रात बहुत गर्म हवा चलती है,
आज की रात न फुटपाथ पे नींद आएगी,
सब उठो, मैं भी उठूँ, तुम भी उठो, तुम भी उठो,
कोई खिड़की इसी दीवार में खुल जाएगी ।
दिल ने ऐसे भी कुछ अफ़साने सुनाये होंगे
अश्क आँखों ने पिये और न बहाये होंगे
बन्द कमरे में जो ख़त मेरे जलाये होंगे
इक-इक हर्फ़ जबीं पर उभर आया होगा
उस ने घबरा के नज़र लाख बचाई होगी
मिट के इक नक़्श ने सौ शक़्ल दिखाई होगी
मेज़ से जब मेरी तस्वीर हटाई होगी
हर तरफ़ मुझ को तड़पता हुआ पाया होगा
बेमहल छेड़ पे जज़्बात उबल आये होंगे
ग़म पशेमा तबस्सुम में ढल आये होंगे
नाम पर मेरे जब आँसू निकल आये होंगे
सर न काँधे से सहेली के उठाया होगा
ज़ुल्फ़ ज़िद कर के किसी ने जो बनाई होगी
रूठे जलवों पे ख़िज़ाँ और भी छाई होगी
बर्क़ आँखों ने कई दिन न गिराई होगी
रंग चेहरे पे कई रोज़ न आया होगा
होके मजबूर मुझे उस ने भुलाया होगा
ज़हर चुप कर के दवा जान के ख़ाया होगा
Kaifi aazmi
बैठे है रहगुज़र पर दिल का दिया जलाये
शायद वो दर्द जाने, शायद वो लौट आये
#कैफ़ी_आज़मी #Kaifi_Azmi