प्यास की कैसे लाए ताब कोई
हीं दरिया तो हो सराब कोई
रात बजती थी दूर शहनाई
रोया पीकर बहुत शराब कोई
कौन सा ज़ख्म किसने बख्शा है
उसका रखे कहाँ हिसाब कोई
फिर मैं सुनने लगा हूँ इस दिल की
आने वाला है फिर अज़ाब कोई
Javed akhtar
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शायराना सी हैं जिंदगी की फ़िज़ा
प्यास की कैसे लाए ताब कोई
हीं दरिया तो हो सराब कोई
रात बजती थी दूर शहनाई
रोया पीकर बहुत शराब कोई
कौन सा ज़ख्म किसने बख्शा है
उसका रखे कहाँ हिसाब कोई
फिर मैं सुनने लगा हूँ इस दिल की
आने वाला है फिर अज़ाब कोई
Javed akhtar